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फिल्म दीवार में शशि कपूर और अमिताभ बच्चन के बीच, एक शानदार सीन है, जो हिंदी सिनेमा का आइकॉनिक सीन बना कि मेरे पास माँ है, मतलब अगर आपके पास माँ है, तो आप दुनिया के सबसे अमीर इंसान हैं। सिनेमा के पर्दे पर एक माँ मदर इंडिया वाली भी आयी, जिसने न्याय का साथ दिया और अपने बच्चे की गलती को माफ़ नहीं किया। इसके बाद, सिनेमा में कई माँ के किरदार आये, लेकिन मेरी समझ में उनमें से ज्यादातर किरदार, अपने बच्चों को ममता की आँचल देने वाले और लोरियां सुनाने वाले अधिक आये। कुछ माँ कॉमिक और रुआब दिखाने वालीं भी आयीं। लेकिन कुछ निर्देशकों ने माँ के उस रूप को भी दर्शाया, जिसमें एक माँ रुद्र रूप लेती है, जब उसके बच्चे पर आंच आती है। श्रीदेवी की मॉम और मातृ वैसी ही कहानियों में से एक हैं। और अब लेटेस्ट कहानी की बात करूं, तो साक्षी तंवर माई बन कर ओटीटी पर आई हैं, जो अपनी बेटी के साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए, एक अलग ही रूप धारण करती है। मेरा मानना है कि किसी शो में साक्षी तंवर का शामिल होना ही, इस बात की गारंटी तो दे ही देता है कि कहानी सतही नहीं होगी। माई का ट्रेलर देख कर, भले ही आपको महसूस हुआ हो कि ये कहानी हमने पहले भी देखी है, इस बार नया क्या? तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि वह आपका भ्रम होगा, क्योंकि इस वेब सीरीज में सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि कहानी कहने के नैरेटिव अंदाज और एक औरत की जिंदगी के कॉम्प्लेक्स के लेयर्स और नि : संदेह साक्षी तंवर के साथ-साथ, शेष कलाकारों के सार्थक अभिनय ने मुझे प्रभावित किया। हाल के दिनों में बन रही थ्रिलर, क्राइम और सस्पेंस ड्रामा सीरीज की श्रेणी की बात करूं, तो माई की कहानी कई मायनों में अपने अंदाज की अनोखी सीरीज है, जिसमें एक मिडिल क्लास औरत की जिंदगी के कॉन्ट्रास्ट को दर्शाने में कोई कसर, निर्देशक ने नहीं छोड़ी है। एक आम महिला, घर के सारे काम, हाँ जी हाँ जी करने वाली, अपनी बेटी के लिए एक बड़ा स्टैंड लेती है, जिसके लिए वह किसी कानून का सहारा नहीं लेती, क्योंकि वह यकीन करती है कि एक माँ की अदालत में, उसका बच्चा हमेशा मासूम और निर्दोष होता है। मैं यहाँ विस्तार से बताना चाहूंगी कि माई सीरीज की किन खूबियों ने मुझे शो देखने के लिए प्रभावित किया।
कहानी लखनऊ के मिडिल क्लास परिवार की है, यह तहजीब वाला लखनऊ नहीं है, बल्कि मिडिल क्लास की नेचुरल भाषा में बात करने वाला परिवार है। शील (साक्षी तंवर ) एक मिडिल क्लास महिला है, वह एक हॉउस वाइफ है, जो न सिर्फ अपना ख्याल रखती है, बल्कि अपने हाई क्लास डॉक्टर जेठ-जेठानी और उनके बेटे का भी ख्याल रखती है। शील एक ओल्ड एज होम में काम करती है, क्योंकि उसे यह काम पसंद भी है और उसका पति यश (विवेक मुशरान ), जिसकी चाहत कभी इंजीनियर बनने की थी, लेकिन अब एक केमिस्ट शॉप चलाता है और लोगों के घर, बल्ब या बिजली की मरम्मत करता है, वह इमोशनल तो है, लेकिन प्रैक्टिकल नहीं है, अपने भाई और भाभी के पैरों में झूक कर, उसकी रहने की आदत है। लेकिन शील, आत्म-सम्मान के साथ जीने में यकीन करती है। उसकी जिंदगी आम लोगों की तरह ही चल रही होती है कि अचानक उसकी बेटी गुड़िया उर्फ़ स्वीट उर्फ़ सुप्रिया ( वामिका गब्बी), जो कि सुन तो सकती है, लेकिन बोल नहीं पाती है, उसको एक ट्रक धक्का मार कर चला जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है, इसे एक दुर्घटना मान चुकी शील का दिमाग, अचानक उस समय ठनकता है, जब ट्रक ड्राइवर उसे कुछ कहता है और यहाँ से एक माई की जर्नी शुरू होती है, वह अपनी बेटी के मर्डर का पता लगाने के लिए जो रास्ते इख़्तियार करती है और अपनी मंजिल तक पहुंच पाती है या नहीं, इस सीरीज में एक माँ के अंदर का गुस्सा, आक्रोश और अपनी मासूम बेटी को न बचा पाने का अफ़सोस, वह सब क्या रूप धारण करता है, यह देखना बेहद दिलचस्प है। इस छह एपिसोड की इस सीरीज में कई प्लॉट्स हैं, सुप्रिया की जिंदगी के भी कई राज खुलते हैं और कहानी के तार जुड़ते जाते हैं, यह भी कहानी का रोचक पहलू है। कहानी में जिस तरह से एक आम महिला की जिंदगी और उसके पैरलल चल रही जिंदगी में जो ट्विस्ट और टर्न्स निर्देशक ने दिए हैं, वे कमाल के हैं और शील यानी साक्षी उसे किस कदर निभाती हैं, यकीनन मेरे लिए एक शानदार अनुभव रहा। साक्षी तंवर के इस किरदार को देख कर, मेरे जेहन में एक बात और आयी, जो मैं जरूर शेयर करना चाहूंगी कि इंडियन माइथोलॉजी में हमने पार्वती के शांत स्वभाव के रूप में सुना है, लेकिन सती जिनकी वह रूप हैं, उनके रुद्र रूप के बारे में सुना है, तो बस कहानी घर घर की पार्वती, जो कि शान्ति से मसलों को सुलझाती थीं, इस बार इस सीरीज में सती बन कर आयी हैं, जिसको गलत बर्दाश्त नहीं है। यह एक संयोग ही है कि साक्षी को इन दोनों ही चरित्रों में देखने का मौका मिला है और उन्होंने इसे बखूबी निभा भी लिया है।
साक्षी तंवर को एकता कपूर ने ढूंढ कर निकाला था, कुछ छोटे किरदारों के बाद, कहानी घर-घर की से उन्हें लोकप्रियता मिली, लेकिन साक्षी ने कभी खुद को टाइपकास्ट नहीं होने दिया। उन्होंने चुनिंदा काम किये, लेकिन कमाल के काम किये। माई भी उनके करियर की बेस्ट सीरीज में से एक गिनी जाएगी। इमोशनल सीन्स से लेकर, जिस तरह से रुद्र रूप उनका दिखा है, वह बिल्कुल बनावटी नहीं है, इतनी सहजता से कोई कैसे अभिनय कर सकता है, मैं साक्षी तंवर से पूछना चाहूंगी। विवेक मुशरान के किरदार को भी निर्देशक ने खूब अच्छे से गढ़ा है, विवेक ने इस अंडरप्ले किरदार को खूब अच्छे से निभाया है, एक नाकाम इंसान की जिंदगी को उन्होंने खूब अच्छे से जिया है। राइमा सेन, प्रशांत और वैभव राज गुप्ता का भी अभिनय काफी सराहनीय हैं। अंकुर रतन में एक अच्छा कलाकार नजर आया है, वामिका गब्बी की मासूमियत, उनका दर्द पर्दे पर सार्थक नजर आया है। लेकिन इस सीरीज में ध्यान आकर्षित करते हैं तो वह हैं अनंत विधात, जिन्होंने एक साथ कई लेयर्स को बखूबी निभाया है, इस सीरीज के बाद उन्हें और कई मौके मिलने वाले हैं।
कहानी में सीमा पाहवा के किरदार को और बेहतर किया जा सकता था, जैसे बाकी किरदारों पर काम किया गया है, सीमा पाहवा एक सार्थक अभिनेत्री हैं, उस लिहाज से उनके किरदार पर काम नहीं किया गया है। जबकि उस किरदार में पूरी गुंजाइश थी।
कुल मिलाकर, मुझे ऐसा लगता है कि यह सीरीज स्ट्रांग महिला किरदार के लिहाज से काफी बेहतरीन हैं। और ऐसी सीरीज का निर्माण होते रहना चाहिए, ताकि महिला किरदारों को अहमियत मिले और उनकी तवज्जो बढ़े।
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