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जर्सी फिल्म पर विस्तार से बात करने से पहले, मैं एक बात जरूर कहना चाहूंगी कि मैं इस बात को पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि जर्सी, शाहिद कपूर के करियर की एक ऐसी फिल्म साबित होगी, जिस पर शाहिद के पिता पंकज कपूर को जितना नाज होगा, ठीक उतना ही फक्र अपने पिता पर जैन और मीशा भी करेंगे, जब भी वह इस फिल्म को देखेंगे। अब बात फिल्म पर। तोअमूमन उन सफल लोगों की कहानियां, हम ढूंढ कर देखना और पढ़ना पसंद करते हैं, जिन्होंने जिंदगी में एक मुकाम हासिल किया हो, क्योंकि मैं, हम, आप हर इंसान खुद को सफल ही देखना चाहता है। वहीं कहानियां हमें इंस्पायर भी करती हैं, हम सब बस वहीं बन जाने की कोशिशों में जुट जाते हैं, यह भी सच है कि 100 प्रतिशत में एक प्रतिशत को वह मुकाम और कामयाबी मिल जाती है, लेकिन उन 99 प्रतिशत लोगों को क्या, जिन्होंने कोशिश की होती है, तो कभी पहले नहीं, सेकेण्ड चांस में उनकी कोशिश मुकम्मल हो पाती है, लेकिन फिर यह जरूरी नहीं होता कि वह सफल ही हो जाये। फिल्म जर्सी की कहानी शाहिद कपूर के किरदार, अर्जुन तलवार की कहानी, उन्हें 99 प्रतिशत कोशिश करने वाले लोगों की बायोपिक है। शाहिद कपूर ने हाल ही में मुझसे हुई बातचीत में इस बात का जिक्र किया कि उन्हें खुद जिंदगी में उनके दर्शकों ने कई सेकेंड चांस दिए हैं, उनकी बुरी फिल्मों के बावजूद, उन्हें एक और बेहतर फिल्म में काम करने का मौका दिया और तब जाकर आज शाहिद इस मुकाम पर पहुंचे हैं। शाहिद की रियल जिंदगी की तरह ही, यह कहानी उस सेकेंड चांस की है, जिसे लेने की अक्सर हम नहीं कर पाते हैं। यह कहानी एक विश्वास की कहानी है, जो एक बेटे को अपने पिता पर है, एक गुरु को अपने शिष्य पर है। ऐसे दौर में जब हम सेल्फी के दौर में संवेदना भूलते जा रहे हैं, मेरी अपनी यह राय है कि ऐसी कहानियां रुपहले पर्दे पर लगातार बननी चाहिए, जो आपमें एक संवेदनशील इंसान को जिंदा रखे। सिनेमा की शर्त अगर एंटरटेनमेंट है, तो इमोशन भी है। यह सिम्पल सी कहानी उस भावना को जिंदा रखती है। कहानी भले ही एक क्रिकेट खिलाड़ी की है, जिसने क्रिकेट से मुंह मोड़ लिया है, लेकिन यह सिर्फ उसकी बायोपिक नहीं है, एक ऐसी लड़की की भी कहानी है, जो जिम्मेदारियों और प्रैक्टिकल जिंदगी के बीच प्यार से समझौता करने पर मजबूर है, यह कहानी एक ऐसे बेटे की है, जो अपने पिता को जज नहीं करता है। पूरी दुनिया जब उस पर भरोसा करना छोड़ देती है, सिर्फ अकेला उसे अपने पिता पर भरोसा होता है। इस फिल्म से मैं कोई उद्देश्य लेकर नहीं लौटी हूँ, बल्कि किसी अपने पर विश्वास करने की हिम्मत लेकर लौटी हूँ। कमीने, हैदर, जब भी मेट, कबीर सिंह के बाद, शाहिद कपूर ने इस फिल्म में साबित कर दिया है कि वह क्यूट से लेकर इंटेंस किरदारों के बाद, इमोशनल किरदारों में भी जमने का दमखम रखते हैं। शुक्रिया निर्देशक का, इस फिल्म में उन्होंने एक महिला किरदार को पति को सांत्वना देने वाली महिला में सीमित नहीं किया है। मृणाल ठाकुर को शाइन करने का मौका दिया है। पंकज कपूर ने इस इमोशनल फिल्म की पिच पर जबरदस्त पारी खेली है। मुझे फिल्म में और भी क्या बातें छू गयीं, मैं विस्तार से बताती हूँ। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि भले ही जर्सी तेलुगू भाषा में बनी फिल्म का हिंदी रीमेक है, लेकिन मैं दोनों की ही इमोशनल कहानी की तुलना नहीं करनी चाहूंगी और इसकी वजह यह है कि मुझे इस कहानी ने एक बार इमोशनल किया, इसके बावजूद कि मैंने तेलुगू फिल्म भी देख ली थी। मैं इसे एक इंडिपेंडेंट फिल्म के रूप में ही देखना चाहूंगी।
कहानी अर्जुन तलवार ( शाहिद कपूर) की है, अर्जुन एक शानदार बैट्समैन है। विद्या तलवार ( मृणाल ठाकुर) अर्जुन की जिंदगी का प्यार है, लेकिन क्रिकेट पहला प्रेम है। कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि अर्जुन को क्रिकेट छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है। विद्या और अर्जुन शादी करते हैं, परिवार बढ़ता है, दोनों को एक बेटा किट्टू(रॉनित) होता है। बेटे को अर्जुन क्रिकेट सिखाता है, उसमें उसकी जान बसती है। किट्टू के लिए उसके पापा हीरो हैं, भले ही दुनिया के लिए जीरो हों। विद्या एक होटल में रिस्पेशनिस्ट का काम करके जैसे-तैसे गुजर बसर कर रही है। अर्जुन और विद्या के रिश्तों में लगातार खटास आ रही है, घर की स्थिति बेहद दयनीय है। अर्जुन एक लापरवाह पति हो सकता है, लेकिन पिता नहीं, यही वजह है कि जब उसका बेटा किट्टू उससे जन्मदिन पर जर्सी मांगता है, जिंदगी में कोई भी उद्देश्य नहीं रह जाने वाले अर्जुन को सिर्फ अपने बेटे की नजर में खुद के सम्मान को बरक़रार रखना है, ऐसे में वह दोबारा पिच पर उतरता है और फिर से वह आत्म-सम्मान हासिल कर पाता है या नहीं, यह इस इमोशनल जर्नी में देखने को मिली मुझे।
इस फिल्म में शाहिद कपूर ने जैसा अभिनय किया है, ऐसा लग रहा है कि अभिनय के रस जी लिए हों। उन्होंने, खुद की नजरों में थके हुए इंसान, जिसे दुनिया लूजर समझती है, उन एक्सप्रेशंस को खूबसूरती से पकड़ा है, कहीं-कहीं उनमें कबीर सिंह वाला अग्रेशन नजर आता है, तो पिता बनते ही एक इमोशनल इंसान। एक क्रिकेटर के बॉडी लैंग्वेज से लेकर, एटिट्यूड, लहजे को शाहिद ने पूरे परफेक्शन के साथ पकड़ा है। खासतौर से ट्रेन जा रही है, और वह जिस तरह से अपना फ्रस्टेशन निकालते हैं, वह दृश्य शाहिद की अबतक की फिल्मों में बेस्ट सीन के रूप में याद रखा जायेगा। मृणाल ठाकुर के लिए मैं बेहद खुश हूँ, उन्हें अंतत: एक ऐसी फिल्म मिली है, जिसमें उन्होंने पूरी तरह से शाइन किया है, वह सिर्फ पति की पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि एक सशख्त और जिम्मेदार माँ और पत्नी के किरदार में हैं। पंकज कपूर, शाहिद कपूर के रियल लाइफ में भी पिता हैं, कोच के रूप में शाहिद के साथ उनकी कमाल की ट्यूनिंग दिखती है। एक कलाकार पर पिता हावी नहीं हुआ है। रॉनित, जो कि फिल्म में बाल कलाकार हैं, वह फिल्म की जान हैं। मुझे तो यह सोच कर आश्चर्य हो रहा है कि उन्होंने दोनों ही फिल्मों में काम करने के बावजूद, बोर नहीं होने दिया है। गीतिका ने भी अच्छा अभिनय किया है। वह फिल्म में जर्नलिस्ट की भूमिका में हैं।
फिल्म की अवधि थोड़ी कम की जा सकती थी, इससे इससे फिल्म के रोमांच को और अधिक बरक़रार रखा जा सकता था .
कुल मिला कर, जर्सी एक इमोशनल जर्नी है, जिसमें पिता और बेटे के रिश्ते की कहानी से लेकर, एक हारे हुए इंसान के दोबारा उठ खड़े होने की कहानी है। मैं तो हर दर्शक से यही कहूँगी कि इस फिल्म को अपने परिवार के साथ एन्जॉय करें। यकीन मानिए, मेरी तरह ही आप भी इमोशनल होंगे और वाकई में आपको भी राजेश खन्ना की फिल्म आनंद के डायलॉग जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नहीं और जिंदगी में कभी भी आपको सेकेण्ड चांस मिल सकता है, उम्र सिर्फ एक अंक है। फिल्म 22 अप्रैल को सिनेमा थियेटर में रिलीज हो रही है, मैं तो कहूँगी आप अपनी जिंदगी में जिस किसी से भी प्यार करते हैं या करती हैं, उनके साथ इस फिल्म को देखें।
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